उत्तर प्रदेशराज्य

शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने की कवायद

स्वतंत्रदेश,लखनऊ:शिक्षा मनुष्य के विकास की आधारशिला है। कोई भी देश या राज्य तब तक विकास का लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता जब तक उसकी शिक्षा व्यवस्था कमजोर हो। सबको शिक्षा सुलभ कराना राज्य की जिम्मेदारी है। नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद राज्य सरकारों की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है, क्योंकि वर्षो के प्रयास के बाद भी बहुत से बच्चे अब भी :विद्यालयों तक पहुंचने से वंचित हैं।

वर्ष 2021-22 में प्रदेश के सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या में 18 लाख की बढोतरी हुई थी।

इसमें कोई दो राय नहीं कि शिक्षा का ढांचा मजबूत किए बिना विकास का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। यह सुकून की बात है कि आदिवासी बहुल मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने इस तथ्य को समझा है और शिक्षा व्यवस्था की कमजोरियों को दूर करने का बीड़ा उठाया है। राज्य के बजट में जर्जर विद्यालयों के पुनर्निर्माण एवं शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए वित्तीय नियोजन कर उसने सुखद संदेश दिया है। निश्चित रूप से इससे सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की बुनियाद मजबूत होगी। नए स्कूल भवनों का निर्माण एवं 13 हजार शिक्षकों की भर्ती से निश्चित रूप से शहर और गांव की शिक्षा व्यवस्था का भेद मिटाने में मदद मिलेगी।

यह बड़ी सच्चाई है कि कई साल से राज्य की स्कूली शिक्षा व्यवस्था कठिनाइयों से जूझ रही है। कोरोना संक्रमण के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित स्कूली शिक्षा ही हुई है। पिछले दो वर्षो से कक्षाओं में पढ़ाई लगभग ठप रही। पर्याप्त देखरेख के अभाव में इस दौरान अनेक स्कूल जर्जर हो चुके हैं। आर्थिक संकट के ऐसे समय में शिक्षा व्यवस्था में सुधार को बजट में महत्व दिया जाना सरकार की संवेदनशीलता ही कही जाएगी। वर्ष 2022-23 के लिए सरकार ने 27,792 करोड़ रुपये का प्रविधान स्कूली शिक्षा के लिए किया है। इसमें 10,345 करोड़ रुपये केवल प्राथमिक स्कूलों के भवन निर्माण के लिए निर्धारित किए गए हैं, जबकि माध्यमिक स्कूलों के भवन निर्माण के लिए 6,212 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के लिए 3,160 करोड़ रुपये का बजट दिया गया है।

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