उत्तर प्रदेशराज्य

लेदर को टक्कर देने वाला मैटीरियल

स्वतंत्रदेश,लखनऊ:मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों की प्रोसेसिंग कर शहर के अंकित अग्रवाल ने अब फूलों से लेदर बनाना शुरू किया है। रिसर्च और तकनीक का इस्तेमाल कर अंकित ने आईआईटी कानपुर की मदद से ऐसा मैटीरियल तैयार किया है ,जो लेदर का बेहतर विकल्प है। आज इंटरनेशनल मार्केट में फूलों से बने फ्लेदर के प्रोडेक्ट की डिमांड है। कानपुर के मंदिरों में चढ़ने वाले आस्था के फूलों से तैयार होने वाले फ्लेदर से अब लेदर की जगह बनने वाले बैग, पर्स, जैकेट, जूते और बेल्ट यूरोपियन मार्केट में धूम मचा रहे है।

                                                      फूल के फाउंडर अंकित अग्रवाल अप

पहले सिर्फ अगरबत्ती और धूपबत्ती बनाते थे…
अंकित ने बताया, मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों को इकट्ठा करते है और उनकी प्रोसेसिंग करके अगरबत्ती, धूपबत्ती और अब फ्लेदर (फूलों से बना लेदर) बनाता है। इससे कचरा मामूली होता है और प्रदूषण भी नहीं होता है। करोड़ों की कमाई और हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। हम लोग पहले रोजाना करीब साढ़े तीन टन फूल कानपुर के मंदिरों से उठाते थे। इससे अगरबत्ती और धूपबत्ती बनाते हैं। हमने ढाई साल की रिसर्च के बाद एक ऐसा मैटीरियल तैयार किया है जो चमड़े को टक्कर दे रहा है। यह मैटीरियल आईआईटी के छात्र-छात्राओं की टीम के साथ मिलकर हमने स्टार्टअप स्थापित किया। फिर दो साल तक आइआइटी कानपुर की अत्याधुनिक प्रयोगशाला में कई प्रयोग करने के बाद यह फ्लेदर बनाया गया। इन सब में नचिकेत ने अन्य टीम मेंबर्स के साथ अहम भूमिका निभाई।

प्रदूषित हो रही गंगा को बचाने के लिए यह शुरुआत की…
आईआईटी कानपुर से केमिकल इंजीनियरिंग करने वाले नचिकेत ने बताया, हम लोगों ने गंगा में बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने के लिए यह फ्लेदर तैयार किया है। लेदर बनाने के लिए पहले जानवर को मारना पड़ता है और उसके बाद उससे निकालने वाले लेदर को 9 बार अलग अलग यूनिट में प्रोसेस किया जाता है। इस प्रोसैस में जो भी गंदगी निकलती है वह सब गंगा में प्रवाहित की जाती है, जिससे गंगा प्रदूषित होती जा रही है। हम लोगों ने फूलों से ऐसा मैटीरियल तैयार किया है जो हूबहू चमड़े की तरह दिखता है और उसी की तरह मजबूत भी है। इसके साथ ही यह उससे कहीं ज्यादा गर्माहट भी देता है। इसे हम लोग बिना केमिकल के प्रोसेस कर के तैयार करते है और आखिरी में इस पर सिर्फ फिनिशिंग के लिए पोलिश करते है जिससे प्रोडक्ट पर शाइनिंग आ जाती है।

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