कितने देशों में अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल?
स्वतंत्रदेश,लखनऊ :अल्लाह हू…अकबर अल्लाह….दिन में पांच वक्त पढ़ी जाने वाली नमाज की यह लाइनें आपके कानों में भी पड़ती होंगी। लेकिन हम लोगों में से ज्यादातर लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसका सबसे बढ़िया उदाहरण उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। इसे गंगा-जमुना तहजीब का शहर कहा जाता है। लखनऊ में परिवर्तन चौक से जब आप लखनऊ विश्वविद्यालय की ओर बढ़ेंगे तो बाएं हाथ पर गोमती के किनारे नदवा कॉलेज है। इसे एशिया में मुस्लिमों का सबसे बड़ा तालीमी मरकज कहा जाता है।
यहीं से लगभग थोड़ी दूरी पर ही स्थित मनकामेश्वर मंदिर है। लेकिन न मंदिर की महंत को अजान से कभी दिक्कत हुई न ही नदवा कॉलेज के मैनेजमेंट को आरती और घंटे घड़ियाल से परेशानी हुई। यही नहीं यहां से लगभग 15 किमी दूर ऐशबाग ईदगाह के सामने ही रामलीला मैदान है। जहां दशहरा में भारी भीड़ होती है। प्रधानमंत्री मोदी भी इस मैदान में आ चुके हैं, लेकिन दोनों समुदायों को ही कभी एक दूसरे से परेशानी नहीं हुई।
लेकिन उत्तर प्रदेश में इन दिनों अजान से एक तबके को दिक्कत शुरू हो गई है। अभी हाल ही में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति से लेकर बलिया के एक विधायक को अजान अब खलल डालने वाली लगने लगी है। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर अजान से क्यों दिक्कत हो रही है? क्या दूसरे देशों में भी अजान के लिए लाउडस्पीकर का प्रयोग होता है? क्या इस तरह के बयान से पॉलिटिकल फायदा भी हो सकता है?
लखनऊ में मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्यागिरी कहती है कि हमारे बगल में नदवा कॉलेज है, जहां मस्जिद बनी हुई है। आसपास में भी कई मस्जिदे हैं। लेकिन उनकी अजान से न कभी दिक्कत हुई है न होगी। वैसे भी जब अजान होती है तो उसके बाद हमारा भजन कीर्तन का समय होता है तो लोग अगर अजान की आवाज से पूजा पाठ या अन्य कामों के लिए उठते हैं तो बुराई क्या है? अजान तो दो से तीन मिनट की होती है, लेकिन हमारे घंटे घड़ियाल तो ज्यादा देर तक बजते हैं। तब तो किसी को दिक्कत नही होती है। यह सब समाज को मूर्ख बनाने की बातें हैं। मैंने तो अपने जीवन मे पहली बार सुना है कि अजान भी किसी को डिस्टर्ब करती हैं।