115 बरस का हुआ केजीएमयू, दुनियाभर में जॉर्जियंस का डंका
स्वतंत्रदेश,लखनऊ :115 बरस के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) का इतिहास समृद्धता से भरा है। दुनिया भर में जॉर्जियंस के नाम से मशहूर यहां के डॉक्टरों की अलग ही धमक है। बात, चाहे चिकित्सकीय दक्षता की हो या फिर जनमानस को संकट से उबारने की, इनके हौसले हमेशा बुलंद रहते हैं। खुद को दांव पर लगाकर जिंदगियां बचाना इनका जुनून है। कोरोना जैसे जैविक युद्ध में इनकी जीवटता का जहां देश साक्षी है, वहीं पुरानी पीढ़ी विश्वयुद्ध में मोर्चा संभाल कर दुनिया को लोहा मनवा चुकी है। वक्त के हिसाब से खुद को ढालने में माहिर जॉर्जियंस का परिवार अब 21 हजार पार कर चुका है। वहीं, फौलादी इरादों वाले डॉक्टरों की नई फौज सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया का संकल्प लेकर मानव सेवा के लिए तैयार है।
22 दिसंबर को केजीएमयू अपना 115वां स्थापना दिवस मना रहा है। कोरोना से युद्ध में फ्रंट लाइन पर लड़ाई लड़ रहे डॉक्टरों में वार्षिक उत्सव को लेकर उमंग है। मगर, संक्रमण काल की वजह से सांस्कृतिक कार्यक्रम टल गया है। ऐसे में सीनियर सभी मेधावियों को वाट्सएप, मेल और कैंपस में मिलते-जुलते बधाई दे रहे हैं। साथ ही नई पीढ़ी को जॉर्जियंस के समृद्ध इतिहास से भी रूबरू करा रहे हैं। उनका कहना है कि जनमानस की रक्षा के लिए खुद को हर वक्त तैयार रखना होगा। महामारी, आपदा जैसे मुश्किल हालातों से निपटने के लिए हौसला बुलंद रखना ही जीत का मूल मंत्र है। इन्हीं संकटों से जूझकर उबरना ही जॉर्जियंस की खूबी है। संघर्षों से बने गौरवपूर्ण इतिहास पर स्वर्णिम आभा कायम रखना अब नई टीम की जिम्मेदारी है।
घायल ब्रिटिश सैनिकों को दीं सांसें
जॉर्जियंस एल्युमनाई एसोसिएशन के एग्जीक्यूटिव सेक्रेटरी डॉ. सुधीर सिंह के मुताबिक वर्ष 1905 में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई। 1911 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से संबद्धता मिलने पर एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू हुई। पहले बैच में 31 छात्रों ने दाखिला लिया। वर्ष 1916 में पहला बैच पास आउट हुआ। यह विश्व युद्ध का वक्त था। युद्ध में बड़ी तादाद में ब्रिटिश सैनिक घायल हो गए थे। ऐसे में ब्रिटिश हुकूमत सैनिकों के जीवन रक्षा को लेकर चिंतित थी। उन्हेंं दक्ष डॉक्टरों की आवश्यकता थी। फिर सैनिकों के इलाज के लिए ब्रिटिश आर्मी मेडिकल कोर में केजीएमयू का पहला पूरा बैच भेजा गया।