उत्तर प्रदेशराज्य

लोग ले रहे हैं 15 से 20 सिगरेट के बराबर जहरीला धुंआ

स्वतंत्रदेश,लखनऊ : पिछले एक सप्ताह से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का वायु गुणवत्ता सूचकांक अर्थात एक्यूआई 400 से 500 की रेंज में बना हुआ है। कोरोनाकाल में लोगों की आंखों में जलन ,आंखों में पानी ,सांस लेने में तकलीफ सहित तमाम परेशानियां देखी जा रहीं है  साथ ही  इन दिनों स्मॉग शब्द भी बहुत चर्चा में है।  स्मॉग दो शब्दों से मिलकर बना एक शब्द है। इसका मतलब है धुंआ अर्थात स्मोक और  और धुंध अर्थात फोग  का मिश्रण। हवा में जहरीली गैसों की मात्रा बढ़ने से लोगों को सांस लेने में तकलीफ होने के साथ-साथ आंखों में जलन की भी शिकायत सामने आ रही है। दरअसल, बढ़ते प्रदूषण के चलते ये परेशानियां होना आम बात है। ऐसा तब होता है जब हवा की गुणवत्ता अर्थात एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरनाक रूप से बढ़ जाता है ।अगर एयर क्वालिटी इंडेक्स 0-50 के बीच है तो इसे अच्छा माना जाता है, 51-100 के बीच में यह संतोषजनक होता है, 101-200 के बीच में औसत, 201-300 के बीच में बुरा, 301-400 के बीच में हो तो बहुत बुरा और अगर यह 401 से 500 के बीच हो तो इसे गंभीर माना जाता है।

लखनऊ में पिछले पांच दिन से कई जगह पीएम 2.5 अपने उच्चतम स्तर 400 के पार दर्ज किया गया।

लखनऊ में पिछले पांच दिन से कई जगह पीएम 2.5 अपने उच्चतम स्तर 400 के पार दर्ज किया गया. पीएम 2.5 हवा में तैरने वाले वाले वो महीन कण हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते हैं, लेकिन सांस लेने के साथ ये हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। वायुमंडल में इनकी मात्रा जितनी कम होती है, हवा उतनी ही साफ़ होती है। इसका हवा में सुरक्षित स्तर 60 माइक्रोग्राम है। इसके अलावा पीएम 10 भी हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। ये सूक्ष्म कण हमारी नाक के बालों से भी नहीं रुकते और फेफड़ों तक पहुंचकर उन्हें ख़राब करते हैं। अगर देखा जाये तो लखनऊ में रहने वाला हर व्यक्ति चाहे वह नवजात शिशु ही  क्यों न हो प्रदूषण के कारण रोज 10 से 15 सिगरेट के बराबर जहरीला धुआं अपने फेफड़ो तक ले रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रजेंटेशन में यह भी बताया गया है कि प्रदूषण के कारण भारत में लोगों की औसत उम्र में 1.7 साल की कमी हुई है। इसके साथ ही साथ एक बात यह भी सामने आई कि दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के 21 शहर हैं। संसदीय समिति को स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से ये जानकारी दी गई कि प्रदूषण के कारण और इससे जुड़े बीमारियों के कारण भारत में होनेवाली मौतों में 12.5 फीसदी लोगों की मौत होती है।इसी प्रकार  अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी के शोध पर अगर विश्वास किया जाये तो उत्तर भारत के लोगों की उम्र प्रदूषण के कारण देश के अन्य साफ़ हवा वाली जगहों में रहने वाले लोगों से   5 से 7 साल कम हो गयी है।

इनडोर प्रदूषण एक साइलेंट खतरा

बाहर के प्रदुषण के ज्यादा होने से घर के अन्दर अर्थात इनडोर प्रदुषण का स्तर भी तेजी से बढता हुआ दिख रहा है  एयर कंडीशनर लगे कमरों में बंद हम खुली हवा की महक भूल से गए है। यह बंद-बंद सी हवा हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह होती है जो सांस से सम्बंधित रोगों (Trouble breathing), एलर्जी, सरदर्द, थकान और अन्य बिमारियों को जन्म दे सकती है ,इसके अतिरिक्त हमारे रोज़ के रहन सहन में ऐसी चीज़े भी है जो घरो की हवा में विषैले तत्व और गैस धीरे धीरे छोडती रहती है।

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