Uncategorized

108 साल पुरानी देव दीपावली अब प्रदेश का राजकीय मेला घोषित

स्वतंत्रदेश,लखनऊकाशी के अर्द्धचंद्राकार घाटों पर सजने वाले देव दीपावली की पहचान अब प्रदेश के मेले के रूप में होगी। प्रदेश सरकार ने देवताओं के उत्सव देव दीपावली को राजकीय मेला घोषित कर दिया है। कैबिनेट ने भी इस पर अपनी मुहर लगा दी है। इसके साथ ही आयोजन की भव्यता भी बढ़ जाएगी।उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर देव दीपावली का आयोजन 27 नवंबर को होगा। राजकीय मेले का दर्जा मिलने के बाद इस बार मेले की भव्यता भी देखने लायक होगी। प्रदेश सरकार की सहमति के बाद देव दीपावली के आयोजन को पंच दिवसीय स्वरूप दिया गया है। 23 से 27 नवंबर तक देव दीपावली महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। पर्यटन और संस्कृति विभाग ने इसकी रूपरेखा तैयार कर ली है।

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह राजघाट पर होने वाले आयोजन के मुख्य अतिथि होंगे। सरकार के इस फैसले के बाद अब देव दीपावली के आयोजन पर होने वाला खर्च नगर विकास विभाग द्वारा उठाया जाएगा। इससे मेला स्थलों पर सड़क, बिजली, शौचालय व आश्रय स्थल जैसी सुविधाओं का विकास करना आसान होगा।

कुंड से लेकर गंगा के तट तक सजता है उत्सव

देव दीपावली का उत्सव काशी में गंगा के तट से लेकर कुंड तक सजता है। काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि देव दीपावली की परंपरा सबसे पहले पंचगंगा घाट पर 1915 में आरंभ हुई थी। परंपरा और संस्कृति में आधुनिकता के मेल से बनारस ने इस आयोजन को वैश्विक पहचान दिलाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देव दीपावली की भव्यता के साक्षी बन चुके हैं।

काशी, काशी के घाट और काशी के लोग होते हैं सहभागी

काशी की देव दीपावली भगवान शिव को समर्पित होती है। काशी के लक्खा मेले में शुमार देव दीपावली के उत्सव में काशी, काशी के घाट और काशी के लोगों की सहभागिता ने इसे महोत्सव में बदल दिया। दीपक और झालरों की रोशनी से रविदास घाट से लेकर आदिकेशव घाट व वरुणा नदी के तट एवं घाटों पर स्थित देवालय, भवन, मठ-आश्रम जगमगा उठते हैं।

धरती पर उतर आते हैं देवी देवता

सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवता स्वर्ग लोक से नीचे धरती पर उतर आते हैं। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षस का संहार करके देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। त्रिपुरासुर के अत्याचारों से मिली मुक्ति और भगवान शिव के इस कृत्य पर सभी देवता अपनी प्रसन्नता जाहिर करने के लिए भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचकर दीप प्रज्वलित करते हैं और खुशियां मनाते हैं।

Related Articles

Back to top button