यूपी एटीएस की कार्रवाई
स्वतंत्रदेश , लखनऊएटीएस ने बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों को घुसपैठ कराने के जिस मानव तस्करी सिंडीकेट का खुलासा किया है, उसे इस्लामिक देशों से फंडिंग हो रही है। इस मामले में एटीएस के रडार पर दो एनजीओ हैं, जिनके जरिए करोड़ों रुपये हासिल किये गये थे। हैरानी की बात यह है कि इस सिंडीकेट को महज तीन साल में 20 करोड़ रुपये भेजे गए, जिसकी वजह से एटीएस अब पूर्व के वर्षों में भेजी गयी रकम के बारे में भी सुराग जुटा रही है। वहीं दूसरी ओर राजधानी स्थित एनआईए/एटीएस कोर्ट के विशेष न्यायाधीश दिनेश कुमार मिश्रा ने तीनों आरोपियों आदिल उर रहमान अशरफी, शेख नजीबुल हक और अबु हुरैरा गाजी को 10 दिन की पुलिस कस्टडी रिमांड पर एटीएस के सुपुर्द करने का आदेश दिया है।सूत्रों के मुताबिक इस प्रकरण में एटीएस को सिंडीकेट के सात अन्य सदस्यों की तलाश है। इनमें अबु सालेह, अब्दुल गफ्फार, अब्दुलाह गाजी, मोहम्मद राशिद, कफिलुद्दीन, अजीम और अब्दुल अव्वल शामिल हैं। अब्दुल गफ्फार विदेशों से आने वाली रकम को बैंक से कैश निकालता था, जबकि अबु सालेह ट्रस्टों के एफसीआरए खातों में विदेश से आने वाले धन को अपने साथियों के जरिए नजीबुल शेख को पहुंचाता था।
इस्लामिक देशों के कई संगठनों द्वारा यह रकम मदरसों और स्कूलों में बेहतर शिक्षा देने के उद्देश्य से भेजी जाती थी, हालांकि इसका इस्तेमाल देश विरोधी गतिविधियों और अवैध मस्जिदों का निर्माण कराने में हो रहा था। यह भी सामने आया है कि इस सिंडीकेट की मदद से तलहा तालुकदार बिन फारुखा, सलाउद्दीन शालिम, इफ्तखार उल हक, हबीबुल्लाह मास्बाह आदि तमाम बांग्लादेशी नागरिकों को घुसपैठ कराकर लाया गया और विभिन्न शहरों में बसा दिया गया। इन सभी के फर्जी दस्तावेज बनवाने के बाद ऑनलाइन बैंक खाते खोले गए, जिसमें विदेश से आने वाली रकम को ट्रांसफर करने के बाद नकद निकाला जाता था और हवाला के जरिए सिंडीकेट के बाकी सदस्यों को भेजा जाता था।
घुसपैठ कराने के बाद महिला को बेचा
एटीएस की जांच में सामने आया कि आदिल उल रहमान ने भारत बांग्लादेश सीमा पर अपने साथी विक्रम की मदद से एक महिला की घुसपैठ में मदद की। बाद में उसकी भारतीय नागरिकता के फर्जी दस्तावेज बनवाने के बाद इब्राहिम नाम के युवक को बेच दिया। इससे स्पष्ट है कि यह सिंडीकेट महिलाओं का शोषण भी करता है। विक्रम पहले भी एटीएस के रडार पर आ चुका है। उसका नाम बांग्लादेशी नागरिकों को घुसपैठ कराने के मामले में सामने आया था।
आतंकी संगठनों का हाथ तो नहीं
पहली बार इस तरह के सिंडीकेट का खुलासा होने के बाद यह आशंका जताई जा रही है कि विदेश से आने वाली रकम को कहीं आतंकी संगठन तो नहीं भेज रहे थे। दरअसल तुर्किए समेत कई देशों के कुछ संदिग्ध संगठन पीएफआई पर प्रतिबंध लगने और तमाम बैंक खाते सीज होने की वजह से भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए नये चैनल का इस्तेमाल कर रहे हैं। कुछ एनजीओ के जरिए शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए करोड़ों रुपये भेजे जा रहे हैं, ताकि जांच एजेंसियों को शक न हो।