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‘लक्ष्मी’ बनकर ख़ूब बरसे अक्षय कुमार

स्वतंत्रदेश,लखनऊ:कोरोना वायरस पैनडेमिक के दौरान सिनेमाघरों की तालाबंदी और भविष्य की अनिश्चितताओं ने साल 2020 में कई बड़ी स्टार कास्ट वाली फ़िल्मों को भी सीधे स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर आने के लिए मजबूर कर दिया। इसी क्रम में अक्षय कुमार और कियारा आडवाणी की ‘लक्ष्मी’ सोमवार (9 नवम्बर) को दिवाली वीक में डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हो गयी।

कोरोना ना होता तो दर्शक लक्ष्मी (पहले लक्ष्मी बम) को मई में ईद पर ही देख चुके होते।

कोरोना ना होता तो दर्शक ‘लक्ष्मी’ (पहले लक्ष्मी बम) को मई में ईद पर ही देख चुके होते। मगर, ‘आसिफ़’ की ईद निकल गयी तो ‘लक्ष्मी’ दिवाली पर बरसने आ गयी। हॉरर-कॉमेडी फ़िल्म ‘लक्ष्मी’ ट्रांसजेंडरों को लेकर सोच की संकीर्णता और समाज में उनकी सहज स्वीकार्यता जैसे संवेदनशील मुद्दे को रेखांकित ज़रूर करती है, मगर इन मुद्दों और संदेशों के बीच फ़िल्म की कहानी पूरी तरह डगमगा जाती है। कई जगह कहानी अपनी मूल-भावना का विरोधाभास करती नज़र आती है।

लक्ष्मी, हरियाणा के रेवाड़ी में रहने वाले आसिफ़ (अक्षय कुमार) और रश्मि (कियारा आडवाणी) की कहानी है, जिन्होंने प्रेम-विवाह किया है। आसिफ़ के साथ रश्मि ख़ुश है। उनके साथ आसिफ़ का भतीजा शान भी रहता है, जिसके माता-पिता कुछ वक़्त पहले एक हादसे में मारे गये थे। आसिफ़ टाइल्स और मारबल का बिज़नेस करता है। तर्कसंगत सोच रखने वाले आसिफ़ को भूत-प्रेतों में यक़ीन नहीं है और अंधविश्वास भगाने के लिए एक संस्था भी चलाता है।

रश्मि के परिवार वाले ख़ासकर पिता सचिन (राजेश शर्मा) बेटी के दूसरे मजहब में शादी करने से नाराज़ हैं। शादी को तीन साल हो गये, लेकिन रश्मि अपने घर नहीं गयी। आख़िरकार, अपनी शादी की 25वीं सालगिरह के सेलिब्रेशन के लिए रश्मि की मां रत्ना (आएशा रज़ा मिश्रा) उसे अपने घर बुलाती हैं।

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