राजनीति

मंत्री कपिलदेव कामत का निधन

स्वतंत्रदेश ,लखनऊ :बिहार सरकार के मंत्री कपिलदेव कामत नहीं रहे। गुरुवार और शुक्रवार की दरम्यानी रात उनकी मौत हो गई। उन्हें कोविड संक्रमण हुआ था। वे हफ्ते भर से पटना एम्स में भर्ती थे। उन्हें पहले से ही किडनी की परेशानी थी। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। गुरुवार को उनका ब्लड प्रेशर कम हो गया था। कामत की हालत पर डॉक्टर लगातार नजर बनाये हुए थे। एक दिन के अंतराल पर उनका डायलिसिस किया जा रहा था। बीच में उनकी हालत स्थिर हो गई थी, लेकिन बाद में बिगड़ गई थी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कपिलदेव कामत के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि कपिलदेव कामत जमीन से जुड़े नेता थे। उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।

जदयू के कद्दावर नेता और मंत्री कपिलदेव कामत नीतीश कुमार के बेहद करीबी थे

गौरतलब है कि कोरोना की चपेट में आकर बिहार सरकार के दूसरे मंत्री की मौत हुई है। इससे पहले भाजपा नेता और मंत्री विनोद सिंह की मौत हो गई थी। विनोद सिंह कोरोना संक्रमित हुए थे। वह कोरोना से स्वस्थ हो गए, लेकिन बाद में उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया था।

कपिलदेव कामत की बहू मीना बाबूबरही से प्रत्याशी
कपिलदेव कामत जदयू के कद्दावर नेता थे। वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाते थे। मधुबनी के बाबूबरही से विधायक रहे कामत नीतीश कैबिनेट में पंचायती राज मंत्री थे। उनके स्वास्थ्य को देखते हुए पार्टी ने इस बार उनकी जगह बहू मीना कामत को बाबूबरही से अपना प्रत्याशी बनाया था।

2005 में पहली बार विधायक बने थे कामत
बहुत व्यवहार कुशल और मृदुभाषी कामत ने अंडर मैट्रिक तक की ही शिक्षा प्राप्त की थी। कामत की सक्रिय राजनीतिक 1980 के बाद शुरू हुई थी। 1980 के विधानसभा चुनाव में बाबूबरही विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र नारायण झा के पक्ष में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। हालांकि विभिन्न कारणों से इनका संबंध विधायक महेन्द्र नारायण झा से खराब हो गया। तनातनी में कामत 1985 के विधानसभा चुनाव में बाबूबरही विधानसभा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हो गए थे। वे चुनाव हार थे। इसके बाद कांग्रेस विधायक गुणानन्द झा के साथ राजनीति शुरू की थी।

आगे इन्होंने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र के जन कांग्रेस के संयोजक बन गए। 1990 के विधानसभा चुनाव में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व. देवनारायण के पक्ष में उतरे और कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र नारायण झा का पुरजोर विरोध किया। महेन्द्र नारायण झा चुनाव हार गए थे।

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