जेलों में कश्मीरी बंदियों के एक साल-उत्तर प्रदेश
स्वतंत्रदेश,लखनऊ| 6 अगस्त 2019 भारत के लिए वह ऐतिहासिक दिन था जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने के बहुप्रतीक्षित फैसले पर केंद्र ने मुहर लगाकर कश्मीर के लिए लंबे समय से उठ रही मांगों को पूरा किया था। इसके साथ ही वहां लागू 35ए (विशेष नागरिकता अधिकार) भी समाप्त हो गया। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 और 35ए के खत्म होने की सूचना संसद में दी तो कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था बनाने के लिए प्रभाव वाले लोगों के उपद्रव करने की संभावनाओं को खत्म करने के लिए वहां के चिन्हित लोगों को हिरासत में लेने के बाद प्रदेश से बाहर की जेलों में भेज दिया गया। उनमें से अधिकतर कश्मीर के बंदियों को उत्तर प्रदेश की केंद्रीय कारागार आगरा, केंद्रीय कारागार नैनी प्रयागराज, केंद्रीय कारागार वाराणसी, केंद्रीय कारागार बरेली, जिला कारागार अंबेडकर नगर, जिला कारागार लखनऊ की जेलों में भेजा गया था।
कश्मीर से विशेष नागरिकता अधिकार सहित जम्मू कश्मीर को दो भागों के में बांटने के फैसले के बाद बंदियों को अगस्त 2019 में अलग अलग तिथियों में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जेलों में भेजा गया था। इंडियन एयरफोर्स के विमानों से जम्मू कश्मीर से लाये गये कैदियों को जेल में भेजनके दौरान काफी सुरक्षा व्यवस्था को चौकस रखा गया था। पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में शिवपुर सेंट्रल जेल भेजे गए तीस बंदियों को जेल में बने दो प्रमुख बैरकों में से एक हाई सेक्योरिटी बैरक (HSB) में बाकी बंदियों से अलग रखा गया था। अमूमन यही स्थिति प्रदेश के दूसरे अन्य जेलों में भी थी। हालांकि बीते साल भर में कश्मीर के उन बंदियों को एक एक कर छोड़ने की प्रक्रिया शुरु हो चुकी है। लिहाजा प्रदेश की जेलों में बंद कश्मीरी बंदी वर्ष भर में छूट कर अपने घर वापस भी लौट चुके हैं।
जेल सूत्रों के अनुसार शासन से निर्देश था कि इन बंदियों को अलग से सुरक्षा दी जाए लिहाजा सभी को अलग सुरक्षित बैरकों में अन्य बंदियों से अलग ही रखा गया। सभी पर विशेष नजर रखी गई और उनको जेल की ओर से वीआइपी ट्रीटमेंट भी दिया गया ताकि उनको कोई शिकायत न रहे। कश्मीर से भेजे गए सभी कैदियों में कई जम्मू कश्मीर की जेलों में बंद पत्थरबाज (स्टोन पेल्टर), आतंकवादियाें और अलगाव वादियों से संपर्क, राजनीतिक पहुंच वाले, पंचायतों से जुड़े महत्वपूर्ण लोग, कारोबारी संगठन से जुडे़ राजनीतिक बंदी शामिल थे। चूंकि बंदियों का प्रोफाइल अधिक बड़ा नहीं था और उनको महज सुरक्षा कारणों से अनुच्छेद 370 हटने के बाद से ही जम्मू कश्मीर की जेलों में कैद होने के बाद बाहर भेजा गया था